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नित्य पूजा विधि मंत्र सहित – अर्थ और उसकी ब्याख्या

नित्यकर्म पूजा

प्रातः काल जब हम उठते हैं तो हमें सर्वप्रथम ईश्वर का ही सुमिरन करना चाहिए।

फिर अपने स्वर का परीक्षण करना चाहिए। नाक से चलने वाले स्वास के तीन प्रकार हैं जिसे स्वर कहते हैं।

जो स्वर चल रहा हो उस ओर के गाल को उसी ओर के हाथ से छूना चाहिए।

 

करदर्शन:
इसके बाद अपने दोनों हाथों को मिलाकर देखते हुए (करदर्शन करते हुए) अगला मंत्र पढ़ें:-

ॐ काराग्रे वसते लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती। 

करमूले तु गोविन्द, प्रभाते करदर्शनम्॥


Om Karaagre Vasate Lakshmi, Karamadhye Saraswati |

Karamoole Tu Govinda, Prabhaate Karadarshanam ||

 

 

 

पृथ्वी से क्षमा प्रार्थना:

सनातन धर्म में धरती को भी देवी पद (भू देवी) प्राप्त है और हर सनातनी धरती माता के रूप में जानता है। इसलिए पृथ्वी पर पहला पैर रखने से पहले ही भूदेवी से इसके लिए क्षमा याचना कर लें। इसके लिए अगला मंत्र पढना चाहिए:

ॐ समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते । 

विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमश्व मे ॥

 

Om Samudra Vasane Devi Parvata Stana Mannddete |

Vissnnu Patni Namas Tubhyam Paada Sparsham Samasva Me ||

 

फिर पूजा स्थान में भगवान का दर्शन करते हुए अथवा सूर्य भगवान के सम्मुख कुछ मांगलिक श्लोक पढना चाहिए; यहाँ हम विशेष मांगलिक श्लोक तो नहीं दे रहे पर मांगलिक श्लोकों के लिए एक पोस्ट ही प्रकाशित करेंगे।

यहाँ त्रिदेव और नवग्रह से सम्बंधित विशेष मन्त्र दे रहे हैं:

 

नवग्रह मन्त्र:

अपने गुणरूपी गंध से युक्त पृथ्वी, रस से युक्त जल, स्पर्श से युक्त वायु, ज्वलनशील तेज, तथा शब्द रूपी गुण से युक्त आकाश महत् तत्व बुद्धि के साथ मेरे प्रभात को मंगलमय करें अर्थात पांचों बुद्धि-तत्व कल्याण हों।

ॐ ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव:  सर्वे ग्रहाः कुरु सुप्रभातम् ।।

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते। 

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

 

Om Brahma murari tripurantakari bhanuh, Sasi bhumisuto budhasca |

Gurusca Sukrah Sani Rahu Ketavah, Sarve Graha Kuru Suprabhatam ||

Om Purnamadah: Purnamidam Purnaat Purnamudchyate |

Purnasya Purnamadaya Purnamevashishyate ||

 

 

स्नान करते समय जल को अभिमंत्रित कर लें। एक जग पानी को भी इस मन्त्र से अभिमंत्रित कर लें और फिर पहले उसी जल से स्नान करें; उसके बाद अपने तरीके से नहाएं:

स्नान मन्त्र:

ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु ॥

Om Gange ca Yamune caiva Godavari Saraswati।

Narmade Sindhu Kaveri jalesmin samnidhim kuru ||

 

अर्थात् हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी नदियों! (मेरे स्नान करने के) इस जल में (आप सभी) पधारिये 

 

  

सूर्य उपासना

 

सूर्य देव को जल चढ़ाने का सही तरीका

  • वास्तु के अनुसार सूर्य देव को जल चढ़ाने के लिए हमेशा तांबे के लोटे का ही इस्तेमाल करना चाहिए। 
  • इस बात का खास ध्यान रखें कि जल हमेशा सूर्योदय के दौरान ही चढ़ाएं। क्योंकि इस समय जल अर्पित करना काफी लाभदायक माना जाता है।
  • सूर्य को जल देते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर रखें। 
  • सूर्य देव को जल अर्पित करने से पहले लोटे में अक्षत, रोली, फूल इत्यादि डाल दें। उसके बाद सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं। 
  • सूर्य को जल देते समय ‘ऊं आदित्य नम: मंत्र या ऊं घृणि सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करें। 
  • सूर्य देव को जल चढ़ाने के बाद जो जल जमीन पर गिरता है उसे लेकर अपने मस्तक पर लगा लें। कहा जाता है कि ऐसा करने से सूर्य देव आपकी सारी इच्छाएं पूरी करेंगे।
  • अगर आपका सूर्य कमजोर है तो नियमित रूप से सूर्य देव को जल दें। ऐसा करने से काफी लाभ मिलेगा। 
  • लाल फूल भी सूर्य देव को अर्पित करना शुभ माना जाता है। 
  • सूर्यागमन से पहले नारंगी किरणें प्रस्फूटित होती दिखाई दे आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़कर इस तरह जल चढ़ाएं कि सूर्य जल चढ़ती धार से दिखाई दें।
  • प्रात: काल का सूर्य कोमल होता है, उसे सीधे देखने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
  • सूर्य को जल धीमे-धीमे इस तरह चढ़ाएं कि जलधारा आसन पर आ गिरे ना कि जमीन पर।

 

स्नान के बाद शुद्ध कपड़े पहनकर तिलक-चंदन लगा लें, शिखा बांध लें, और भगवान सूर्य को गायत्री मन्त्र से तीन बार अर्घ्य दें।

यदि गायत्री मन्त्र न आता हो तो गुरु मन्त्र से ही दें अथवा यदि दीक्षित भी न हों तो इस मन्त्र से दें:

 

सूर्य उपासना 

सूर्य देव को रोज सुबह स्नान करने के बाद तांबे के लोटे में जल भरकर अर्घ्य देना चाहिए, साथ ही सूर्य मंत्र का भी जाप करना चाहिए- 

ॐ एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते। 
अनुकम्पय माम् भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।

Om ehi surya sahasransho tejorashe jagatpate.

Anukampaya maam bhaktya gruhaanarghyam Divakar

 

अर्थात:- सूर्य देव जी ज्ञान, सुख, स्वास्थ्य, पद, सफलता, प्रसिद्धि के साथ-साथ सभी आकांक्षाओं को पूरा करते है।

 

 

 

 

सूर्य देव के मंत्र
मित्राय नम: ॥१॥ रवये नम: ॥२॥ सूर्याय नम: ॥३॥ भानवे नम: ॥४॥ 
खगाय नम: ॥५॥ पूष्णे नम: ॥६॥ हिरण्यगर्भाय नम: ॥७॥ मरीचये नम: ॥८॥ 

आदित्याय नम: ॥९॥ सवित्रे नम: ॥१०॥ अर्काय नम: ॥११॥ भास्कराय नम: ॥१२॥

 

अर्घ्य देने के बाद भगवान सूर्य को प्रणाम करते हुए अगले मन्त्रों को पढ़ें:

सूर्यनमस्कारमन्त्र:
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥ जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है।

 

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च, आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने । 

दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् । सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।


आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर । दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमस्तुते ।
नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे! जगत्प्रसूति स्थितिनाश हेतवे || 
त्रप्तमयाय त्रिगुणात्मकधारिणे! विरंचिनारायण शंकारत्मने ||

 

Om surya aatma jagatastasyushasch, adityasya namaskaram ye kurvanti dine dine |

Dirghamayurbalam viryam vyadhi shok vinashanam. Surya padodakam tirth jathare dharayamyaham ||

 

Adidev namastubhyam prasidamam bhaskar. Divakar namastubhyam prabhakar namastute |

Namah savitre jagadekchakshushe! Jagatprasuti sthitinash hetave ||

Traptamayay trigunatmakdharine! Biranchinarayan shankaratmane ||

 

 

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम:
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै नकाराय नमः शिवाय ॥१॥
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय, नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय, तस्मै मकाराय नमः शिवाय ॥२॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृंद, सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ॥३॥
वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य, मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै वकाराय नमः शिवाय ॥४॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै यकाराय नमः शिवाय ॥५॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥६॥

 

 

Nagendraharay trilochanay, Bhasmangaragay maheshvaray

Nityay shuddhay digambaray, Tasmai nakaray namah shivay. (1)

Mandakinisalilachandanacharchitay, Nandishvarapramathanathamaheshvaray.

Mandarapuspabahupuspasupujitay, Tasmai makaray namah shivay (2)

Shivay gourivadanabjbrund, Suryay dakshaadhvaranashakay.

Shrinilakanthay vrushadhvajay, Tasmai shikaray namah shivay (3)

Vashishthakumbhodbhavagautmarya, Munindradevarchitasekharay.

Chandraarkavaishvanaralochanay, Tasmai vakaray namah shivay (4)

Yakshasvarupay jatadharay, Pinakahastay sanatnay

Divyay devay digambaray, Tasmai yakaray namah shivay (5)

Panchaksharamidam punyam yah pathecchhivasannidhau. Shivlokamvapnoti shiven sah modate (6)

 

 

 

 

स्वस्तिवाचन: Link

भारत की यह प्राचीन परम्परा रही है कि जब कभी भी हम कोई कार्य प्रारम्भ करते है, तो उस समय मंगल की कामना करते हैं।

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।

देवा नोयथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥

Aa no bhadrah kratavo yantu vishvato̕dabdhaso aparitas udbhidah |

Deva noyatha sadamid vrudhe asannaprayuvo rakshitaro divedive ||

अर्थ – हमारे पास चारों ओर से ऐंसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों। प्रगति को न रोकने वाले और सदैव रक्षा में तत्पर देवता प्रतिदिन हमारी वृद्धि के लिए तत्पर रहें।

 

देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम्।

देवानां सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्र तिरन्तु जीवसे ॥

Devanam bhadra sumatirujuyatam devanam ratirabhi no ni vartatam |

Devanam sakhyamup sedima vayam deva na aayuh pra tirantu jivase ||

अर्थ – यजमान की इच्छा रखनेवाले देवताओं की कल्याणकारिणी श्रेष्ठ बुद्धि सदा हमारे सम्मुख रहे, देवताओं का दान हमें प्राप्त हो, हम देवताओं की मित्रता प्राप्त करें, देवता हमारी आयु को जीने के निमित्त बढ़ायें।

 

तान् पूर्वयानिविदाहूमहे वयंभगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्।

अर्यमणंवरुणंसोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्।।

Tan purvayanividahumahe vayambhagam mitramaditim dakshamasridham | Aryamanamvarunamsomamashvina sarasvati nah subhagaa mayaskarat ||

अर्थ – हम वेदरुप सनातन वाणी के द्वारा अच्युतरुप भग, मित्र, अदिति, प्रजापति, अर्यमण, वरुण, चन्द्रमा और अश्विनीकुमारों का आवाहन करते हैं। ऐश्वर्यमयी सरस्वती महावाणी हमें सब प्रकार का सुख प्रदान करें।

 

तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत् पिता द्यौः।

तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् ॥

Tanno vato mayobhu vatu bheshajam tanmata pruthivi tat pita dyouh |

Tad gravaanah somasuto mayobhuvastadashvina shrunutam dhishnya yuvam ॥

अर्थ – वायुदेवता हमें सुखकारी औषधियाँ प्राप्त करायें। माता पृथ्वी और पिता स्वर्ग भी हमें सुखकारी औषधियाँ प्रदान करें। सोम का अभिषव करने वाले सुखदाता ग्रावा उस औषधरुप अदृष्ट को प्रकट करें। हे अश्विनी-कुमारो! आप दोनों सबके आधार हैं, हमारी प्रार्थना सुनिये।

 

तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम्।

पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥

Tamishanam jagatastasthushaspatim dhiyanjinvamavase hoomahe vayam |

Pusha no yatha vedasamasad vrudhe rakshita payuradabdhah svastaye ||

अर्थ – हम स्थावर-जंगम के स्वामी, बुद्धि को सन्तोष देनेवाले रुद्रदेवता का रक्षा के निमित्त आवाहन करते हैं। वैदिक ज्ञान एवं धन की रक्षा करने वाले, पुत्र आदि के पालक, अविनाशी पुष्टि-कर्ता देवता हमारी वृद्धि और कल्याण के निमित्त हों।

 

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

Svasti na indro vruddhashravaah svasti nah pusha vishvavedah |

Svasti nastarkshyo arishtanemih svasti no bruhaspatirdadhatu ||

अर्थ – महती कीर्ति वाले ऐश्वर्यशाली इन्द्र हमारा कल्याण करें, जिसको संसार का विज्ञान और जिसका सब पदार्थों में स्मरण है, सबके पोषणकर्ता वे पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें। जिनकी चक्रधारा के समान गति को कोई रोक नहीं सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। वेदवाणी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें।

 

पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः।

अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्निह ॥

Prushadashva marutah prushnimatarah shubhanyavano vidatheshu jagmayah |

Agnijihva manavah surchakshaso vishve no deva avasa gamannih ||

अर्थ – चितकबरे वर्ण के घोड़ों वाले, अदिति माता से उत्पन्न, सबका कल्याण करने वाले, यज्ञआलाओं में जाने वाले, अग्निरुपी जिह्वा वाले, सर्वज्ञ, सूर्यरुप नेत्र वाले मरुद्गण और विश्वेदेव देवता हविरुप अन्न को ग्रहण करने के लिये हमारे इस यज्ञ में आयें।

 

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।

स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥

Bhadram karnebhih shrunuyam deva bhadram pashyemakshabhiryajatrah | Sthirairangaistushtuvansastanubhirvyashem devahitam yadayuh ||

अर्थ – हे यजमान के रक्षक देवताओं! हम दृढ अंगों वाले शरीर से पुत्र आदि के साथ मिलकर आपकी स्तुति करते हुए कानों से कल्याण की बातें सुनें, नेत्रों से कल्याणमयी वस्तुओं को देखें, देवताओं की उपासना-योग्य आयु को प्राप्त करें।

 

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम।

पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥

Shataminnu sharado anti deva yatra naschakra jarasam tanunam |

Putraso yatra pitaro bhavanti maa no madhya reerishatayurgantoh ||

अर्थ – हे देवताओं! आप सौ वर्ष की आयु-पर्यन्त हमारे समीप रहें, जिस आयु में हमारे शरीर को जरावस्था प्राप्त हो, जिस आयु में हमारे पुत्र पिता अर्थात् पुत्रवान् बन जाएँ, हमारी उस गमनशील आयु को आपलोग बीच में खण्डित न होने दें।

 

अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।

विश्वेदेवा अदितिः पंचजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम॥

Aditirdyauraditirantarikshamaditirmata sa pita sa putrah |

Vishvedeva aditih panchajana aditirjatamaditirjanitvam ||

अर्थ – अखण्डित पराशक्ति स्वर्ग है, वही अन्तरिक्ष-रुप है, वही पराशक्ति माता-पिता और पुत्र भी है। समस्त देवता पराशक्ति के ही स्वरुप हैं, अन्त्यज सहित चारों वर्णों के सभी मनुष्य पराशक्तिमय हैं, जो उत्पन्न हो चुका है और जो उत्पन्न होगा, सब पराशक्ति के ही स्वरुप हैं।

 

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

 

Om Dyau: Shantirantariksham Shanti:, Pruthvi Shantirap: Shantiroshadhaya: Shanti: |

Vanaspataya: Shantirvishve Deva: Shantirbram Shanti:, Sarvam Shanti:, Shantirev Shanti:, saa maa Shantiredhi॥

Om shanti: Shanti: Shanti:॥

 

 

 

 

 

सामान्य पूजा विधि

 

 

नित्यकर्म:
* दैनिक पूजा भी नित्य एक ही समय करनी चाहिए |
* जितना सबेरे करें उतना अच्छा |
* सपरिवार एक साथ पूजा करने का प्रयास करें।
* जितना ही समय दें मन को एकाग्र कर दें |
* शारीरिक और मानसिक शुद्धि दोनों करें |
* यदि ईश्वर पर विश्वास है तो अनुचित तरीके से कालाधन न कमाएं |
* “कर्म ही पूजा है” , अतः संसार सेवा का जो भाग आपके हिस्से में आया उसे पूरी निष्ठा से करें |
* पूजा पर बैठने से पहले स्नानादि कर शुद्ध वस्त्र धारण करें, माथे पर चंदन या तिलक लगाएं, शिखा बांध लें, भगवान सूर्य को अर्घ देकर न्यूनतम १० बार गायत्री मंत्र अथवा गुरुमंत्र जप अवश्य करें | इसके बाद ही पूजा करने बैठें, किंतु बिना आसन के न बैठें | पूजा पर बैठने से पहले ही फूल-माला-बेलपत्र-दूभी-तुलसी आदि की व्यवस्था कर लें, अक्षत हेतु चावल को साफ करके कुंकुम-हरिद्रा चूर्ण-गंगाजल आदि मिला कर रख लें, तभी पूजा पर बैठें ।

 

 

पूजा-सामाग्री रखने की विधि:

बायीं ओर सुवासित जलसे भरा उदकुम्भ (जलपात्र), घंटा, धूपदानी, घृत का दीपक भी बायीं ओर रखें।
दायीं ओर– तेल का दीपक, सुवासित जल भरा शंख ।
सामने – कुमकुम, (केसर) और कपूर के साथ घिसा गाढ़ा चन्दन, पुष्प आदि हाथ में तथा चन्दन ताम्रपात्र में न रखें।

 

प्रथम- स्वयं का शुद्धीकरण या पवित्रीकरण तथा ध्यान-प्रार्थना

द्वितीय- जिस सामग्री से हम भगवान का पूजन अर्चन करते हैं, उस पूजन सामग्री का भी शुद्धीकरण या पवित्रीकरण

इसके अतिरिक्त स्वयं व वस्तु दोनों में ही दिव्य भाव के आवाहन हेतु भी उसके पूजन का विधान करते हैं।

कर्मकांड के साथ-साथ सामान्य तौर पर जो मंत्रों के पाठ की प्रक्रिया है, उसमें वैदिक एवं लौकिक दोनों तरह के मंत्र पढ़े जाते हैं। वैदिक मंत्र सामान्यतः दार्शनिक प्रकृति के मंत्र हैं, जिनका कालांतर में कर्मकांडीय उपयोग होने लगा।

कर्मकांडीय दृष्टि से पूजन की विभिन्न व विशेष परंपराएँ रही हैं, जिनमें पंचोपचार तथा षोडशोपचार पूजन सर्वाधिक प्रमुख हैं।

पूजन विधि के लिए कोई एकरूप प्रक्रिया निर्धारित नहीं की जा सकती, क्योंकि अवसर व देव के अनुसार प्रक्रिया परिवर्तित हो सकती है।

विद्वानों का मतैक्य भी संभव नहीं और भक्ति के भाव का विधानीकरण भी संभव नहीं।

 

गणेशाम्बिका पूजन

(पंचोपचार पूजा विधि)

 

आचमन- (आत्म शुद्धि के लिए):
ॐ केशवाय नमः। ॐ माधवाय नमः। ॐ नारायणाय नमः।
तीन बार आचमन कर आगे दिये मंत्र पढ़कर हाथ धो लें।

ॐ हृषिकेशाय नमः ।।

 

Om keshvaye Namah | Om Madhavaye Namah | Om Narayanaye Namah

Rinse your hands three times, recite the following mantra and wash your hands.

Om Hrishikeshaya Namah: ||

 

 

 

 

* पुनः बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने ऊपर और पूजा सामग्री पर निम्न श्लोक पढ़ते हुए छिड़कें।

शरीर शुद्धि मंत्र:
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।

पुण्डरीकाक्षः पुनातु। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।।

 

Om apavitrah pavitro va sarvaavastham gatopi va |

Yah smaret pundarikaksham sa bahyaabhyantarah shuchih |

Pundarikakshah punatu. Om pundarikakshah punatu ||

 

आसन शुद्धि मंत्र:

आसन वो स्थान होता है जिस पर आप विराजमान हो कर भगवान की आराधना करते हैं, इसका शुद्ध होता आवश्यक है. नीचे लिखा मंत्र पढ़कर आसन पर जल छिड़के-
ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्‌ ॥

Om Prthvi tvayaa dhrtaa lokaa devi-tvam Vissnnunaa dhrtaa |

Tvam Ca dhaaraya maam devi-Pavitram kuru Ca-Aasanam ||

 

 

शिखाबन्धन (चोटी) मंत्र:

ॐ मानस्तोके तनये मानऽआयुषि मानो गोषु मानोऽअश्वेषुरीरिषः।
मानोव्वीरान् रुद्रभामिनो व्वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे ||

ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखाबद्धे तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे।।

Om manastoke tanaye mannaayushi mano goshu manoashveshuririshah |

Manovviran rudrabhamino vvadhirhavishmantah sadamittva havaamahe ||

 

Om chidrupini mahamaye divyatejah samanvite |

Tishth devi shikhabaddhe tejovrudhim kurushva me ||

 

 

 

 

माला धारणाम् मंत्र:

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी ।

चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ।।


ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहणामि दक्षिणे करे ।

जपकाले च सिध्दयर्थ प्रसीद मम सिद्धये ।।

 

Om maam male mahamaye sarvashaktisvarupini |

Chaturvargastvayi nyastastasmanme siddhida bhav ||

 

Om avignam kuru male tvam gruhanami dakshine kare |

Japakale ch siddayarth prasid mam siddhaye ||

 

 

 

कुश धारण:

निम्न मंत्र से बायें हाथ में तीन कुश तथा दाहिने हाथ में दो कुश धारण करें।

ॐ पवित्रोस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रोण सूर्यस्य रश्मिभिः।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम्।।

 

Om pavitrostho vaishnavyau saviturwah prasav̕utpunamyachidren pavitron suryasya rashmibhih |

Tasya te pavitrapate pavitrapootasya yatkamah punetacchhakeyam ||

 

पुनः दायें हाथ को पृथ्वी पर उलटा रखकर “ॐ पृथिव्यै नमः” इससे भूमि की पञ्चोपचार पूजा का आसन शुद्धि करें।

पुनः ब्राह्मण यजमान के ललाट पर कुंकुम तिलक करें।

 

यजमान तिलक:

ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः।
तिलकान्ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये।

Om aditya vasavo rudra vishvedeva marudganah |

Tilakante prayacchhantu dharmakamarthasiddhaye |

 

 

* फूल लेकर गुरु का ध्यान करें, गुरु का कोई मंत्र पढकर गुरु के निमित्त फूल पूजा स्थान पर रख दें |

गुरु मंत्र:
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुविष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

Om gururbrama guruvishnuh gururdevo maheshvarah |

Guru Sakshat parabram tasmai shri guruve namah ||

 

* देवताओं की जितनी भी प्रतिमाएं हों उन सभी को स्नान करा दें, दूसरा शुद्ध वस्त्र पहना दें और आसनी पर यथास्थान रखें | चित्र हो या बड़ी प्रतिमा हो तो मात्र जल छिड़क कर पोछ दें । बड़ी प्रतिमाओं को पर्व अवसरों पर ठीक से साफ किया करें।

 

देवताओं को स्नान मंत्र:
ॐ गङ्गे च यमुने  चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥

Om gange ch yamune chaiv Godavari sarasvati |

Narmada sindhu kaveri snanartham pratigruhyatam ||

देवता या ईष्ट आवाहन: देवता या ईष्ट के पहले से ही प्रतिष्ठित होने के कारण आवाहन को कई लोग उपचारों में नहीं मिलते, उसके स्थान पर ध्यान करना चाहिए, ऐसा किन्हीं का मत है। इसके लिए दोनों हाथ जोड़कर निम्र मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
आवाहयामि देवेश सर्वशक्ति शक्ति समन्विते नारायणाय भद्राय गुरुरूपायते नम: ।
गुरुब्रह्मा गुरु विष्णु: गुरुदेवो महेश्वर:। गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम: ॥

Aavahayami devesh sarvashakti Shakti samanvite narayanay bhadray gururupayate nam |

Gurubrama guru Vishnu: gurudevo maheshvar | Guru: sakshat parabram tasmai shri guruve nam: ||

 

देवताओं को पुष्प का आसन: आत्म शुद्धि के लिए, समस्त रोग निवारण के लिए तथा समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के लिए आसन का उपयोग किया जाता है, जप क्रिया में जला हुआ, पुराना या फटा हुआ तथा दूसरे का आसन उपयोग नहीं कर चाहिए। मृगचर्म, व्याघ्रचर्म, कुश, रेशम, रुई तथा ऊन का आसन ग्राह्य है। देवताओं को पुष्प का आसन देना चाहिए क्योंकि पुष्प हृदय की पावनता का प्रतीक है। पवित्रता ही ईष्ट कृपा का सबसे बड़ा सम्बल है इसके लिए निम्र मंत्र का उच्चारण करें-
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यकरं शुभम्। आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर॥

Ramyam Sushobhanam Divyam Sarva Soukhyakaram Shubham |

Aasanam Cha Mayaa Grihaann Parameshwar ||

 

पाद्य मंत्र (देवताओं को चरण धोना): आहूत देवताओं को चरण धोने के लिए जल दिया जाता है, उसे पाद्य कहते हैं, उसके लिए दो आचमनी जल समर्पित करना चाहिए। पाद्य समर्पित करते समय निम्र मंत्र का जप करें-
यद् भक्ति लेश सम्पर्कत् परमानंद संभव:। तस्मै ते परमेशान पाद्यं शुद्धाय कल्पये॥

Yad Bhakti Lesh Samparkat Paramaanand Sambhavah |

Tasmei Te Parameshaan Paadyam Shuddhaay Kalpaye ||

 

अर्घ्य मंत्र (जल देना): देवताओं को हस्त प्रक्षालन के लिए जो जल दिया जाता है, उसे अघ्र्य कहा जाता है, किसी पात्र में जल लेकर उसमें सुगंधित द्रव्य तथा पुष्प डाल कर देवता को समर्पित करके और निम्र मंत्र का उच्चारण करें-
अर्घ्य गृहाण देवेश! गन्ध पुष्पाक्षतै: सह। करुणां कुरु मे देवए गृहाणाघ्र्य नमस्तु ते॥

Arghyam Grihaann Devesh Gandh Pushpaakshateih Sah |

Karunnaam Kuru Me Dev! Grihaannaarghya Namastu Te ||

 

 

आचमनीय: देवताओं को मुख शुद्धि के लिए जो जल दिया जाता है उसे आचमनी जल कहते हैं, हमारी परम्परा रही है कि जिन देव, गुरु या अतिथि का आवाहन करते हैं, मुख शुद्धि के लिए उन्हें जल देते हैं, उस समय निम्र मंत्र बोलें-

सर्व तीर्थ समानीतं सुगन्धिं निर्मलं जलं। आचम्यतां मयादत्तं गृहाण परमेश्वर॥

Sarva Teerth Samaaneetam Sugandhim Nirmalam Jalam |

Aachmyataam Mayaadattam Grihaann Parameshwar ||

 

स्नान: देवता स्वयं ज्ञानरूपी समुद्र में स्थित हैं, सभी जल उनसे अनुबंधित हैं, फिर उन्हें स्नान कैसे? फिर भी समर्पण युक्त स्नान के लिए तीन आचमनी से जल चढ़ावें-
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णि नर्मदाजलै:। स्नापितोऽसि मया देव तथा शाङ्क्षत कुरुष्ण मे॥

Gangaa Saraswatee Revaa Payoshanni Narmadaajaleih |

Snaapitosi Mayaa Dev Tathaa Shaantim Kurushnna Me ||

 

 

 

मधुस्नान: 

मधु वाता ऋतायते मधुं क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः॥

मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवं रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥

मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमान् अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥

 

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, मधुस्नानं समर्पयामि।

(पुनः जल स्नान करायें।)

 

Om madhuvvaataa rataayate madhuksharanti sindhavah | Maadhveenrah santvoshadheeh ||

Madhunaktamutosh so madhumat paarthav (Gum) rajah | Madhu dhaurastu nah pitaa ||

Madhumaatro vanaspatih madhumaanastu sooryah | Maadhvee graavo bhavantunah ||

 

Om bhurbhuvah svah ganeshaambikabhyam namah, madhusnanam samarpayami |

 

वस्त्र: स्वच्छ और अछिद्र वस्त्र देवता को प्रदान करना चाहिए, फटे या पुराने वस्त्र चढ़ाने से दरिद्रता तथा मलिन वस्त्र से तेज हीन होता है। वस्त्र के अभाव में मौली चढ़ाएं।

सर्व भूषादि के सौम्ये लोक लज्जानिवारणे।

मयो पपादिते तुभ्यं गृहाण परमेश्वर।।

 

Sarva Bhooshaadi Ke Soumye Lok Lajjaanivaaranne |

Mayopapaadite Tubhyam Grihaann. Parameshwar ||

 

 

* सभी देवताओं को चंदन-कुंकुम-सिंदूर आदि लगा दें | सिंदूर मात्र देवियों को दें,

लेकिन दो देवों को भी सिंदूर अर्पित होता है:- गणेश और हनुमान |

यदि संभव हो तो अष्टगंध, गोरोचन, श्वेत चंदन, कपूर, कस्तूरी, केसर का तिलक करें जो सर्व देवताओं को प्रिय है।

 

तिलक: पाप, दोष, दुर्भाग्य और क्लेशनाश के लिए देवता को तिलक किया जाता है, सभी तिलकों में सुगन्ध द्रव्य युक्त श्वेत चंदन ही श्रेष्ठ माना जाता है, यदि संभव हो तो अष्टगंध, गोरोचन, श्वेत चंदन, कपूर, कस्तूरी, केसर का तिलक करें जो सर्व देवताओं को प्रिय है। मंत्र-

श्री खंड चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरम्।

विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृहयाताम्।।

 

Shree Khand Chandanam Divyam Gandhaaddyam Sumanoharam |

Vilepanam Surshreshtth Chandanam Pratigrihyaataam ||

 

* सभी देवताओं को अक्षत चढाएं; भगवान विष्णु को अक्षत नहीं चढता है उन्हें तिल-जौ चढाएं ।

चावल का पूरा दान अक्षत होता है, अर्थात चावल का दान टुटा न हो।

 

 

अक्षत: अक्षत का अर्थ है जो चावल टूटे नहीं हैं, उन्हें देवता को इसलिए चढ़ाते हैं कि इससे साधक को अक्षुण्ण रूप धन-धान्य की प्राप्ति हो। अक्षत चढ़ाते समय कुंकुम मिलाना चाहिए। मंत्र-

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ता: सुशोभिता:।

मया निवेदिता भक्तया गृहाण परमेश्वर।।

 

Akshtaashcha Surshreshtth Kumkumaaktaah Sushobhitaah |

Mayaa Niveditaa Bhaktyaa Grihaann Parameshwar ||

 

पुष्प: सुख, सौभाग्य के लिए, आरोग्य प्राप्ति के लिए देवताओं को पुष्प समर्पित करें। मंत्र-

माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वैप्रभो।

मयोपनीतानि पुष्पानि गृहाण परमेश्वर।।

 

Maalyaadeeni Sugandheeni Maalatyaadeeni Veiprabho |

Mayopaneetaani Pushpaanni Grihaann Parameshwar ||

* गणेश को तुलसी, दुर्गा को दूभी, सूर्य को बेलपत्र न चढाएं

 

धूप: श्रेष्ठ वनस्पतियों से निर्मित, सुगंध पूर्ण तथा देवता के ग्रहण करने योग्य औषधियों से बनी हुई धूप देवता को दिखानी चाहिए, जिसके प्रभाव से दोषों का शमन हो सके।

वनस्पति रसोदभूत: गन्धाढय: सुमनोहर:।

आघ्रेय: सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृहयताम।।

 

Vanaspati Rasodbhootah Gandhaaddyah Sumanoharah |

Aaghreyah Sarvasevaanaam Dhoopoyam Pratigrihayataam ||

 

दीप: देवताओं को दीपक दिखाने का अर्थ है जिस प्रकार दीपक प्रज्वलित होकर अंधकार को दूर करता है, उसी प्रकार इस दीपक के माध्यम से हमारे हृदय का अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो।

सुप्रकाशो महादीप: सर्वत: तिमिरापह:।

स बाह्याम्यरं: ज्योति: दीपोऽयं प्रतिगृह्यताम।।

 

Suprakaasho Mahaadeepah Sarvatah Timiraapahah |

Sa Baahyaamyaram Jyotih Deepoyam Pratigrihyataam ||

 

 

नैवेद्य: नैवेद्य का अर्थ है, अमृतांश की भावना। नैवेद्य अर्पित करते समय यह भावना रखनी चाहिए कि तृप्ति हेतु भगवान को सुस्वाद भोजन अर्पित कर रहा हूं, इससे वह प्रसन्न हों।

नैवेद्यं गृह्यतां देव भकिंत में ह्यचलां कुरु।

ईप्सितं मे वरं देहि, सर्वसौभाग्य कारकम।।

Neivedyam Grihyataam Dev Bhaktim Me Hyachalaam Kuru |

Eepsitam Me Varam Dehi, Sarvasoubhaagya Kaarakam ||

 

 

ताम्बूल: सुपारी, लौंग, इलायची मुख शुद्धि कारक पदार्थ से युक्त पान देना चाहिए, ताम्बूल सोलह कलाओं का प्रतीक है, ताम्बूल प्रदान करने से पूर्ण अमृतत्व प्राप्ति हो यही आशय है-

पूंगीफलं महद् दिव्यं नागवली र्दलैर्युतम्।

एलादि चूर्ण संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम।।

Poongifalam Mahad Divyam Naagvalee-rdaleiryutam |

Elaadi Choornna Sanyuktam Taamboolam Pratigrihyataam ||

 

दक्षिणा: द्रव्य दक्षिणा समर्पित करे।

ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, कृतायाः पूजायाः साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।

Om hiranyagarbhah samavartatagre bhutasya jatah patirek aasit |

Sa dadhar pruthivim dyamutemam kasmai devay havisha vidhem ||

Hiranyagarbhagarbhastham hembijam vibhavasoh |

Anantapunyafaladamatah shantim prayach me ||

Om bhurbhuvah svah ganeshaambikabhyam namah, krutayah pujayah sadgunyaarthe dravyadakshinam samarpayami |

 

 

विशेषार्घ्य: ताम्रपात्र में जल, चन्दन, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा और दक्षिणा रखकर अर्घ्यपात्र को हाथ में लेकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ेंः-

रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रौलोक्यरक्षक।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्।।
द्वैमातुर कृपासिन्धो षाण्मातुराग्रज प्रभो!।
वरदस्त्वं वरं देहि वाञ्िछतं वाञ्छितार्थद।।
गृहाणाघ्र्यमिमं देव सर्वदेवनमस्कृतम्।
अनेन सफलाघ्र्येण फलदोऽस्तु सदा मम।

Raksh raksh ganadhyaksh raksh traulokyarakshak |

Bhaktanambhayam karta trata bhav bhavarnavat ||

Dvaimatur krupasindho shaanmaturagraj prabho! |

Varadastvam varam dehi vancichhatam vanchhitarthad ||

Gruhaanaaghryamimam dev sarvadevanamaskrutam |

Anen saphalaghryen falado̕stu sada mam |

 

यदि कोई स्तुति-पाठ करनी हो तो कर लें |

 

गणेश स्तुति

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय
नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमोऽस्तुते॥

Vigneshvaray varaday surapriyay lambodaray sakalay jagaddhitay |

Nagananay shruti yagnya vibhushitay gourisutay gananath namo̕stute॥

 

गौरी का ध्यान

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः |

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्

श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः ध्यानं समर्पयामि।

 

Namo devyai mahadevyai shivaye satatam namah |

Namah prakrutyai bhadraye niyatah pranatah sm tam

Shri ganeshaambikabhyam namah dhyanam samarpayami |

 

 

  1. नारायणी स्तुति

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

मंगलम भगवान् विष्णु
मंगलम गरुड़ध्वजः |
मंगलम पुन्डरी काक्षो
मंगलायतनो हरि ||

सर्व मंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव

कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा
बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात
करोमि यध्य्त सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि ||

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव |
जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव
गोविन्द दामोदर माधवेती ||

 

  1. श्री राम स्तुति

    रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे
    रामेहणाभिहता निशारचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
    मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं
    वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये।

श्रीरामाष्टक

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधो दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
वैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्‌॥
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्‌।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम्‌॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरी दाहनम्‌।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्ण हननं एतद्धि रामायणम्‌॥

 

  1. श्री कृष्ण स्तुती

    कस्तुरी तिलकं ललाटपटले वक्षस्थले कौस्तुभं
    नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणुः करे कंकणं।
    सर्वांगे हरिचन्दनं  सुललितं कंठे च मुक्तावलि ।
    गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणिः ॥
    वसुदेवसुतं  देव  कंस चाणुर मर्दनं।
    देवकी परमानन्दं  वन्दे कृष्णं जगदगुरुम् ॥

इसके बाद आरती करें | आरती के समय शंख-घंटी अवश्य बजाएं |

 

 

नीरांजन आरती करें

जिस देवता की आराधना पूजा कर रहे हैं उसकी आरती गा सकते हैं, घी से बनी हुई एक बत्ती, पांच बत्ती से आरती करें तथा फिर मंत्र बोलें।

 

आनंद मत्र मकरन्दम अनन्त गन्धं योगीन्द्र सुस्थिर
मलिन्दम् अपास्तबन्धम् वेदान्त करणेक विकाशशीलमं नारायणस्य चरणाम्बुज मानतोऽस्मि।

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, अरार्तिकं समर्पयामि।
(कर्पूर की आरती करें, आरती के बाद जल गिरा दें।)

 

मन्त्र पुष्पांजलिअंजली में पुष्प लेकर खड़े हो जायें।
ॐ मालतीमल्लिकाजाती- शतपत्रादिसंयुताम्।
पुष्पांजलिं गृहाणेश तव पादयुगार्पितम्।।
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्रा पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च।
पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। (पुष्पाञ्जलि अर्पित करे।)

 

प्रदक्षिणा –

ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः।
तेषा ँ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि।

(प्रदक्षिणा करे।)

परिक्रमा हमेशा घड़ी की दिशा में करनी चाहिए. सीधे हाथ की ओर से परिक्रमा शुरू करे. मंदिर बहुत पवित्र स्थान होता है यहां लगातार मंत्र जाप, पूजा और घंटियों की ध्वनि से सकारात्मक ऊर्जा एक घेरा बन जाता है. ये ऊर्जा उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित होती है

 

प्रार्थना।।

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय। निर्विविघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
अनया पूजया सिद्धि-बुद्धि-सहितः श्रीमहागणपतिः साङ्गः परिवारः प्रीयताम्।। श्रीविघ्नराजप्रसादात्कर्तव्यामुककर्मनिर्विघ्नसमाप्तिश्चास्तु।

 

 

 

 

 

शान्ति मंत्र

सह नाववतु  सह नौ भुनक्तु  सहवीर्यं करवावहै  तेजस्वि नावधीतमस्तु  मा विद्विषावहै

शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

 

 

आरती के बाद पुनः जल घुमाएं |
क्षमाप्राथना संबंधी जो मंत्र आए पढ लें या मात्र मानसिक भाव से क्षमायाचना कर लें |

त्वमेव माता च पिता त्वमेव , त्वमेव बन्धुश्चसखात्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन । 
यत्पूजितं मयादेवं परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम । तस्मात कारुण्यभावेन रक्ष मां परमेश्वर।।

एकबार पुनः फूल चढाएं |

द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष ^ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय:  
शान्तिर्वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्व ^ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सामा शान्तिरेधि।। ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ।

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।

साष्टांग प्रणाम करें |
ॐ पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहि माम् पुण्डरीकाक्ष सर्वपाप हरो भव ॥

अपने आसन के नीचे की भूमि पर दो-चार बूंद जल गिराकर उसे माथे पर लगा लें |
नैवेद्य के पास थोड़ा जल गिराकर हटा लें |
शक्राय नमः

संध्या के समय भी पूजा स्थल पर दीप अवश्य जलाएं यदि धूप भी जला सकें तो उत्तम | दीप उत्तराभिमुख होना चाहिए
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं धनसंपदः  
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमस्तु ते।।
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमस्तु ते।।

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि।। 

 

(अगरबत्ती हर प्रकार से हानिकारक ही है, अतः धूप ही जलाएं | धूप में गाय का घी अवश्य मिला हो | धूना-गुग्गुल भी जला सकते हैं)
यदि चंदन घिसना हो तो घिसकर किसी छोटे पात्र में रखें लेकिन वो पात्र तांबे का नहीं होना चाहिए; पीतल का हो सकता है |